साथ ही साथ मानव सभ्यता की विस्तार नीति भी लगातार जारी है। बाजार और व्यापार की इस नीति ने एक कदम आगे की राह पकड़ हथियारों की सैन्य ताकतों के साथ-साथ नवीनतम रूप जैविक हथियार के रूप में बढ़ा दिया है। जिसने दुनिया में जैविक आतंकवाद के द्वार खोल दिए हैं।
जैविक आतंक मानव निर्मित सर्वाधिक प्राचीन होने के साथ विनाशकारी हथियारों में से है। यह ऐसा हथियार है जिनके द्वारा कम खर्च में युद्ध की बड़ी से बड़ी सेना को भी नष्ट किया जा सकता था। यह विनाशकारी हथियार विषाणु, कीटाणु, वायरस या फफूंद जैसे संक्रमणकारी तत्वों से निर्मित किए जाते हैं। जो सदियों से युद्ध का कूटनीतिक हिस्सा रहे हैं।
युद्ध में विरोधी सेना को बीमार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। मानव की विस्तारवादी नीति इन महामारियों का कारण बनती रही है।
ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने अपने शत्रुओं को मारने के लिए उनके पानी के कुओं में जहरीला कवक डलवा दिया। जिससे सैंकड़ो लोग मारे गए। संभवतः यह इतिहास के प्राचीनतम उदाहरणों में से एक है, जब जैविक हथियार का प्रयोग किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र अंतरक्षेत्रीय अपराध और न्याय शोध संस्थान (यूएनआईसीआरआई) ने एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसका नाम "वायरस को लेकर गलत जानकारियों को रोकना: कोविड-19 महामारी के दौरान आतंकवादियों, हिंसक चरमपंथियों और आपराधिक समूहों द्वारा सोशल मीडिया का दुर्भावनापूर्ण इस्तेमाल है।" यह रिपोर्ट बताती है कि आतंकवादी और चरमपंथी समूह सोशल मीडिया पर ऐसी साजिशी कहानियां भी फैला रहे हैं जिनमें वायरस को हथियार बनाया जा रहा है और सरकारों में भरोसे को कमजोर किया जा रहा है।
अल कायदा और आईएसआईएस से जुड़े समूह कोविड-19 महामारी का फायदा उठा रहे हैं और मनगढ़ंत कहानियां फैला रहे हैं कि "ईश्वर को नहीं मानने वाले" को वायरस सजा दे रहा है और यह "पश्चिम पर टूटा खुदा का कहर है." रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकियों को इसको जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उकसाया जा रहा है।
रिपोर्ट में यूएनआईसीआरआई की निदेशक एंटोनिया मैरी डि मेयो लिखती हैं, "यह देखना चिंताजनक है कि कुछ आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी गुटों ने सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल करने का प्रयास किया है ताकि संभावित आतंकवादियों को, कोविड-19 का संक्रमण फैलाने के लिये उकसाया जा सके और इसे एक कामचलाऊ जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।"
मौजूदा इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल आतंकवाद भड़काने, कट्टरपंथी बनने वाले आतंकवादियों को हमले करने के लिए प्रोत्साहित करने में किया जा सकता है। रिपोर्ट में ऐसे मामलों का जिक्र किया गया है जिनमें दक्षिणपंथी चरमपंथी गुटों ने खुले तौर पर अपने समर्थकों से स्थानीय अल्पसंख्यकों खासतौर पर अल्पसंख्यक समूहों को वायरस से संक्रमित करने के लिए कहा है।
No comments:
Post a Comment