Wednesday, July 7, 2021

लॉकडॉन के दौरान और बाद की जीवनशैली में बदलाव

हर व्यक्ति किसी ना किसी असुरक्षा की भावना से ग्रसित होता है जिसको दूर करना बहुत ही जरूरी है । किसी प्रसिद्ध चिंतक ने कहा था की "मेरी मां ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था - मैं और भय । " विज्ञान ने भी इस बात को साबित किया है कि इंसान के मस्तिष्क में एक इस प्रकार का बटन होता है जिसको दबाने पर वह अपने व्यवहार में मनचाहा बदलाव ला सकता है और आस पास के वातावरण को अपने व्यवहार के माध्यम से बदलकर इनका अच्छे से इस्तेमाल कर सकता है लेकिन इसके बावजूद इस लॉकडाउन के दौरान हम अंदर से अकेला महसूस कर रहे थे यह कोई अनोखी बात नही है।
जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई तो धीरे - धीरे लोग इसके लिए तैयार होने लगे । मार्च,  के आखरी सप्ताह में, फिर अप्रैल, 2020 के मध्य में दूसरे लॉकडॉउन , फिर तीसरे लॉकडाउन मई, 2020 के प्रथम सप्ताह में और फिर ऐसे ही लॉकडाउन आता गया। इस पूरे लॉकडाउन में मुझे लगा कि जैसे कोरोना के नेगेटिव इफेक्ट के साथ बहुत सारी चीज़ें पॉजिटिव होने लगी हैं। मुझे लगा कि अब हम लोग यह समझ रहे हैं की प्रकृति हमे यह जता रही है की संभलो, इतना फास्ट मत चलो, शायद हमें वह रिश्तों की वैल्यू समझाना चाहती है, क्युकी इन दिनों दो बाते तो बिल्कल साफ हो गई की " आप किन लोगों के साथ और किन लोगों के बिना नहीं रह सकते ।" मुझे लगा कि लोग शायद अब धीरे-धीरे जब घरों में रहेंगे तो थोड़ा सा मनन करेंगे, थोड़ा अपने आप को ठंडे दिमाग से एक सेल्फ-रियलाइजेशन में जाकर चीजों को पढ़ेंगे और खुद की कमियां ढूंढेंगे और सुधार करेंगे और जब लॉकडाउन के बाद फिर से उस सामान्य दुनिया की तरफ लौटेंगे तो शायद हम में बहुत सारे कुछ अच्छे बदलाव होंगे। 
लेकिन पता नहीं कुछ दिनों में ही कुछ ऐसे नज़ारे देखने को मिले हैं की यह लगा की शायद वो सिर्फ एक फील-गुड फैक्टर था और असल मे ऐसा कुछ नहीं होने वाला है और फिर वैसे ही दिन आ जाएंगे। हम फिर वैसे ही स्वभाव के हो जाएंगे और वही पुरानी चीज़े शुरू हो जाएंगी, जिनसे हम लॉकडाउन में गए थे। एक बहुत आम उधारण ही अगर देखें की चौराहे पर जो लाइटें बहुत दिनों से बंद थी, हम सीधे निकल जा रहे थे , अब वापस उन लाइट्स पर फिर से लाल-हरी-पीली बत्ती हो गई है और लोग फिर उसी तरह से उन रूल्स को तोड़ रहे हैं और हम वापस अपने उसी रूप में आने लगे हैं। शुरुआती महीनों में लॉकडाउन के दौरान अनुशासन को देखते हुए लगा था की शायद हम बहुत कुछ सीखने वाले हैं, और इसी संयम के आधार पर हमारी जीत की मजबूत नींव पड़ने वाली है। लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए लगता है हम किसी भी सूरत में अनुशासन मानने वाले नही है , चाहे वह रेड लाइट हो, चाहे वो सोशल डिस्टेंसिंग हो चाहे वह मास्क ही क्यों ना हो जिसे लोग तभी लगाते हैं जब तक ट्रैफिक पुलिस उन्हें ना देखें। लोगों की अनावश्यक भागम भाग देखकर मुझे लगता है की हम वैसे ही पहले की तरह एक दूसरे के प्रति असहनशील हो जायेंगे। इस दुनिया को दुनियादारी की जरूरत तो है पर इंसानियत के बिना वह किसी काम की नही है।
लॉकडाउन के बाद की दुनिया में अगर हम अपने व्यवहार में  सुनना, देखना, परखना और अगर थोड़ा सा अच्छाई का एलिमेंट डालने की कोशिश करेंगे तो पोस्ट-लॉकडाउन के बाद की दुनिया में कोरोना से होने वाली हानि ना केवल इस पॉजिटिव चेंज के साथ ऑफ सेट हो जायेगी , बल्कि कुछ ना कुछ अतिरिक्त लाभ ही प्राप्त करेंगे। 
अगर हम वाकई में अपने स्वभाव में ये बदलाव ला पाएं और एक दूसरे के प्रति अपने व्यवहार को बदल पाएं , तो हम इस अच्छे बदलाव के लिए कोरोना को कह भी सकते हैं - थैंक यू वेरी मच।

No comments:

Post a Comment

"Chat GPT vs. Traditional Content Writing: Pros and Cons for SEO"

“Chat GPT vs traditional Content Writing: Pros and Cons for SEO”   Chat GPT vs Traditional Content Writing : There are two different methods...