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Wednesday, July 7, 2021

कोरोना और आतंकवाद


डर या भय की पद्धति को ही आतंकवाद कहा जाता है, जो कि हमारे देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक विकराल समस्या बन चुकी है। आतंकवादी अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों की निर्मम हत्या करके देश को अस्थिर करना चाहते हैं। इनकी न तो कोई जाति होती और न ही कोई देश व धर्म होता है। कानूनी व्यवस्था को ताक पर रखकर देश में अराजकता फैलाना इनका मुख्य उद्देश्य होता है। यह पूरे विश्व में मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ा गंभीर खतरा बन चुका है।

साथ ही साथ मानव सभ्यता की विस्तार नीति भी लगातार जारी है। बाजार और व्यापार की इस नीति ने एक कदम आगे की राह पकड़ हथियारों की सैन्य ताकतों के साथ-साथ नवीनतम रूप जैविक हथियार के रूप में बढ़ा  दिया है। जिसने दुनिया में जैविक आतंकवाद के द्वार खोल दिए हैं।

जैविक आतंक मानव निर्मित सर्वाधिक प्राचीन होने के साथ विनाशकारी हथियारों में से है। यह ऐसा हथियार है जिनके द्वारा कम खर्च में युद्ध की बड़ी से बड़ी सेना को भी नष्ट किया जा सकता था। यह विनाशकारी हथियार विषाणु, कीटाणु, वायरस या फफूंद जैसे संक्रमणकारी तत्वों से निर्मित किए जाते हैं। जो सदियों से युद्ध का कूटनीतिक हिस्सा रहे हैं।

युद्ध में विरोधी सेना को बीमार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। मानव की विस्तारवादी नीति इन महामारियों का कारण बनती रही है।

ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के लोगों ने अपने शत्रुओं को मारने के लिए उनके पानी के कुओं में जहरीला कवक डलवा दिया। जिससे सैंकड़ो लोग मारे गए। संभवतः यह इतिहास के प्राचीनतम उदाहरणों में से एक है, जब जैविक हथियार का प्रयोग किया गया था।

हाल ही में यूएन की एजेंसी ने "स्टॉप द वायरस डिसइंफॉर्मेशन" शीर्षक एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें बताया गया है कि आतंकवादी और अपराधी तत्व कोविड-19 महामारी का फायदा कैसे अपना जाल फैलाने के लिए कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र अंतरक्षेत्रीय अपराध और न्याय शोध संस्थान (यूएनआईसीआरआई) ने एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसका नाम "वायरस को लेकर गलत जानकारियों को रोकना: कोविड-19 महामारी के दौरान आतंकवादियों, हिंसक चरमपंथियों और आपराधिक समूहों द्वारा सोशल मीडिया का दुर्भावनापूर्ण इस्तेमाल है।" यह रिपोर्ट बताती है कि आतंकवादी और चरमपंथी समूह सोशल मीडिया पर ऐसी साजिशी कहानियां भी फैला रहे हैं जिनमें वायरस को हथियार बनाया जा रहा है और सरकारों में भरोसे को कमजोर किया जा रहा है।

अल कायदा और आईएसआईएस से जुड़े समूह कोविड-19 महामारी का फायदा उठा रहे हैं और मनगढ़ंत कहानियां फैला रहे हैं कि "ईश्वर को नहीं मानने वाले" को वायरस सजा दे रहा है और यह "पश्चिम पर टूटा खुदा का कहर है." रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकियों को इसको जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उकसाया जा रहा है।

रिपोर्ट में यूएनआईसीआरआई की निदेशक एंटोनिया मैरी डि मेयो लिखती हैं, "यह देखना चिंताजनक है कि कुछ आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी गुटों ने सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल करने का प्रयास किया है ताकि संभावित आतंकवादियों को, कोविड-19 का संक्रमण फैलाने के लिये उकसाया जा सके और इसे एक कामचलाऊ जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।"

मौजूदा इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल आतंकवाद भड़काने, कट्टरपंथी बनने वाले आतंकवादियों को हमले करने के लिए प्रोत्साहित करने में किया जा सकता है। रिपोर्ट में ऐसे मामलों का जिक्र किया गया है जिनमें दक्षिणपंथी चरमपंथी गुटों ने खुले तौर पर अपने समर्थकों से स्थानीय अल्पसंख्यकों खासतौर पर अल्पसंख्यक समूहों को वायरस से संक्रमित करने के लिए कहा है।

लॉकडॉन के दौरान और बाद की जीवनशैली में बदलाव

हर व्यक्ति किसी ना किसी असुरक्षा की भावना से ग्रसित होता है जिसको दूर करना बहुत ही जरूरी है । किसी प्रसिद्ध चिंतक ने कहा था की "मेरी मां ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था - मैं और भय । " विज्ञान ने भी इस बात को साबित किया है कि इंसान के मस्तिष्क में एक इस प्रकार का बटन होता है जिसको दबाने पर वह अपने व्यवहार में मनचाहा बदलाव ला सकता है और आस पास के वातावरण को अपने व्यवहार के माध्यम से बदलकर इनका अच्छे से इस्तेमाल कर सकता है लेकिन इसके बावजूद इस लॉकडाउन के दौरान हम अंदर से अकेला महसूस कर रहे थे यह कोई अनोखी बात नही है।
जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई तो धीरे - धीरे लोग इसके लिए तैयार होने लगे । मार्च,  के आखरी सप्ताह में, फिर अप्रैल, 2020 के मध्य में दूसरे लॉकडॉउन , फिर तीसरे लॉकडाउन मई, 2020 के प्रथम सप्ताह में और फिर ऐसे ही लॉकडाउन आता गया। इस पूरे लॉकडाउन में मुझे लगा कि जैसे कोरोना के नेगेटिव इफेक्ट के साथ बहुत सारी चीज़ें पॉजिटिव होने लगी हैं। मुझे लगा कि अब हम लोग यह समझ रहे हैं की प्रकृति हमे यह जता रही है की संभलो, इतना फास्ट मत चलो, शायद हमें वह रिश्तों की वैल्यू समझाना चाहती है, क्युकी इन दिनों दो बाते तो बिल्कल साफ हो गई की " आप किन लोगों के साथ और किन लोगों के बिना नहीं रह सकते ।" मुझे लगा कि लोग शायद अब धीरे-धीरे जब घरों में रहेंगे तो थोड़ा सा मनन करेंगे, थोड़ा अपने आप को ठंडे दिमाग से एक सेल्फ-रियलाइजेशन में जाकर चीजों को पढ़ेंगे और खुद की कमियां ढूंढेंगे और सुधार करेंगे और जब लॉकडाउन के बाद फिर से उस सामान्य दुनिया की तरफ लौटेंगे तो शायद हम में बहुत सारे कुछ अच्छे बदलाव होंगे। 
लेकिन पता नहीं कुछ दिनों में ही कुछ ऐसे नज़ारे देखने को मिले हैं की यह लगा की शायद वो सिर्फ एक फील-गुड फैक्टर था और असल मे ऐसा कुछ नहीं होने वाला है और फिर वैसे ही दिन आ जाएंगे। हम फिर वैसे ही स्वभाव के हो जाएंगे और वही पुरानी चीज़े शुरू हो जाएंगी, जिनसे हम लॉकडाउन में गए थे। एक बहुत आम उधारण ही अगर देखें की चौराहे पर जो लाइटें बहुत दिनों से बंद थी, हम सीधे निकल जा रहे थे , अब वापस उन लाइट्स पर फिर से लाल-हरी-पीली बत्ती हो गई है और लोग फिर उसी तरह से उन रूल्स को तोड़ रहे हैं और हम वापस अपने उसी रूप में आने लगे हैं। शुरुआती महीनों में लॉकडाउन के दौरान अनुशासन को देखते हुए लगा था की शायद हम बहुत कुछ सीखने वाले हैं, और इसी संयम के आधार पर हमारी जीत की मजबूत नींव पड़ने वाली है। लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए लगता है हम किसी भी सूरत में अनुशासन मानने वाले नही है , चाहे वह रेड लाइट हो, चाहे वो सोशल डिस्टेंसिंग हो चाहे वह मास्क ही क्यों ना हो जिसे लोग तभी लगाते हैं जब तक ट्रैफिक पुलिस उन्हें ना देखें। लोगों की अनावश्यक भागम भाग देखकर मुझे लगता है की हम वैसे ही पहले की तरह एक दूसरे के प्रति असहनशील हो जायेंगे। इस दुनिया को दुनियादारी की जरूरत तो है पर इंसानियत के बिना वह किसी काम की नही है।
लॉकडाउन के बाद की दुनिया में अगर हम अपने व्यवहार में  सुनना, देखना, परखना और अगर थोड़ा सा अच्छाई का एलिमेंट डालने की कोशिश करेंगे तो पोस्ट-लॉकडाउन के बाद की दुनिया में कोरोना से होने वाली हानि ना केवल इस पॉजिटिव चेंज के साथ ऑफ सेट हो जायेगी , बल्कि कुछ ना कुछ अतिरिक्त लाभ ही प्राप्त करेंगे। 
अगर हम वाकई में अपने स्वभाव में ये बदलाव ला पाएं और एक दूसरे के प्रति अपने व्यवहार को बदल पाएं , तो हम इस अच्छे बदलाव के लिए कोरोना को कह भी सकते हैं - थैंक यू वेरी मच।

Sunday, July 4, 2021

हर वक्त बिना वजह तुलना करना जीवन को बेस्वाद बनाती है

 सब लोगो ने पिछले कुछ महीनों में कोरोना वायरस के संक्रमण को जिस तरह से महसूस किया है , लगभग सभी लोगों ने ही इसके दुष्प्रभावों को अपने जीवन में देखा है और अपने परिवार को एक डर के साए में भी जीते हुए देखा है।
किसी ने सही कहा है कि हम सब लोग एक ही प्रकार के तूफान में हैं, लेकिन हम सब की इस तूफान को पार करने की नाव अलग - अलग है। इंसान के अंदर दूसरे के साथ तुलना करने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है और किसी भी प्रकार की परस्थितियों में वह अपनी तुलना दूसरे से किसी ना किसी रूप से करता ही रहता है, जैसे कभी - कभी एक ही माता-पिता के दो बच्चे भी बचपन से बड़े होते हुए अपने  माता-पिता के द्वारा उनको दिए जाने वाले लालन-पालन की भी तुलना कर लेते हैं।अगर हम अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए और इससे कुछ प्रेरणा पाने के लिए कर रहे हैं तो यह बहुत अच्छी बात है , लेकिन अगर हम केवल खुद के प्रयासों को दूसरों से ज्यादा साबित करने के लिए या दूसरे को केवल जिंदगी में भाग्यशाली बताने के लिए तुलना के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं , तो मेरे हिसाब से यह नकारात्मक हो जाता है । 
लोग आपस में तुलना करने लगे हैं की मुझे और लोगों के मुकाबले ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है या कम या फिर की मुझे मेरे वेतन में दूसरों के मुकाबले ज्यादा नुकसान सहन करना पड़ा है या कम । 
यदि हम इसी प्रकार की बेवजह तुलना करते हैं, तो मेरा तो यही कहना है की यह आत्मा , दिल , मन , सब आपका है और अगर आप इसे दुखी रखते हैं और इस दुख के कारण आप इसका सही प्रकार से उपयोग नहीं करते हैं , तो इससे प्रभावित होकर आपकी ही उत्पादकता में कमी आती है और आपकी इस नकारात्मक सोच के कारण अनेक लोग आपको 'निराशावादी' होने का मेडल पहना देते हैं। जब हम लोग एक दूसरे के साथ आर्थिक या सामाजिक रूप से होने वाले व्यक्तिगत नुकसान का आंकलन कर रहे होते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं की कई परिवार ऐसे भी हैं जिन्होंने कोरोना वायरस के कारण अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया है या उनके परिवार में इस संक्रमण के कारण अनेक प्रकार की दिककते आई हैं। अनेक मजदूरों ने अपनी रोजी-रोटी खो दी हैं और बहुत सारे दिनों की मेहनत के बाद भी किसी तरह अपने गांव तक पहुंच पाए हैं। अगर हम ढूंढेंगे , तो हमे ऐसे ज्यादा लोग मिलेंगे , जिनको हमारे मुकाबले में कोरोना वायरस ने ज्यादा सताया है। 
यदि इसी प्रकार हम अपने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दूसरे लोगों के संबंध में राय बनाना शुरू कर देंगे , तो हमे पता ही नही लग पाएगा कि दूसरों में किस प्रकार के बेहतर कौशल उपलब्ध हैं , जिनसे हम भी सीख सकते हैं। इसीलिए कई बार अकारण की गई तुलना हमें फ़ायदा देने की बजाय नुकसान दे कर जाती है ।

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